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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


सोने की कंठी


बिन्दो को एक आशा थी। वह सोचती थी कि विवाह के बाद मुझे भी बहुत से गहने और कपड़े मिलेंगे, जैसे दूसरी विवाहिता लड़कियों को मिला करते हैं। उनके समान मैं भी अपने घर की मालकिन बनूंगी। मेरे 'वे' भी बहुत-सा रुपया लाकर मेरे हाथों में रख दिया करेंगे और तब मैं भी मनमाना खर्च करूंगी। बाजार में कोई अच्छा कपड़ा या गहना देखते ही 'वे' मेरे लिए खरीद लावेंगे, और मैं उसी अभिमान से पहिनूंगी जैसे ये पहिनती हैं। किसी के पूछने पर मैं जरा संकोच और सलज्ज भाव से कह दूंगी कि यह गहना या कपड़ा तो खुद वे ही अपनी पसंद से मेरे लिए खरीद लाए हैं, उसे विश्वास था कि जब विधाता ने उसे सुंदरता देने में इतनी उदारता की है, तब ये गहने-कपड़े की इच्छा भी एक-न-एक दिन अवश्य पूरी होगी। वह उस दिन की प्रतीक्षा बड़ी लगन से किया करती।

धीरे-धीरे बिन्दो सयानी हुई और उसका विवाह हो गया। किंतु निर्धन की बेटी भला धनवान के घर कैसे व्याही जाती? मित्रता बैर और विवाह-सगाई तो अपने बराबरी वालों में ही शोभा देते हैं। तात्पर्य यह कि बिन्दो के गहने-कपड़ों की प्यास ज्यों-की-त्यों बनी रही। विवाह के समय कुछ गहने और कपड़े आए अवश्य थे; किंतु ससुराल पहुंचने के वाद ही वे एक-एक करके किसी-न-किसी बहाने से ले लिए गए। बिन्दो समझ गई कि वे गहने उसके नहीं हैं। बेचारी जी मसोसकर रह गई; और करती भी क्या?

बिन्दो की ससुराल में खेती-बारी होती थी। परिवार बड़ा था। बिन्दो की दो जैठानियां थीं और एक अविवाहित देवर। तीन भाई तो खेती का काम मन लगाकर करते थे; किंतु बिन्दो के पति जवाहर का मन खेती के कामों में न लगता था। वह स्वभाव से ही कुछ शौकीन थे। उनकी गाने-बजाने की तरफ विशेष रुचि थी। कुश्ती लड़ने और पहलवानी करने का भी शीक था। गठे हुए बदन पर सदा मलमल या तनजेब का कुरता रहता; घुंघराले वाल सदा किसी-न-किसी सुगंधित तेल से बसे रहते। स्वभाव में आत्माभिमान की मात्रा भी अधिक थी। वे कुछ न कमाकर भी घर भर पर अपना रोब जमाते रहते।

बिन्दो कुछ पढ़ी-लिखी होने के कारण उस देहात में आदर की वस्तु हो गई थी; विशेषकर उस समय अवश्य, जब वह रामायण या महाभारत पढ़ती और गांव की अनेक स्त्रियां वहां एकत्र हो जातीं, वे बिन्दो की सास के भाग्य की सराहना करतीं और कहतीं, यह लक्ष्मी-सी बहू तुम्हारे घर आई है; इसके कारण भगवान के दो बोल हमलोग भी सुन पाती हैं।

बिंदो भी अपने इस देहाती जीवन से असंतुष्ट न थी। सास उसका आदर करती थी, जेठीनियाँ उसे काम न करने देतीं। इसके अतिरिक्त जवाहर उसे प्यार भी बहुत करता था। उसी घर में लड़ाई-झगड़ा होने पर कई बार ऐसे मौके आए कि उसके जेठ अपनी स्त्रियों पर हाथ चला बैठे, किंतु जवाहर बिंदो से कभी एक कड़ी बात भी न करता। वह हर तरह से, अपने देहाती, ढंग से ही सही, उसे संतुष्ट रखने का प्रयत्न करता । बिंदो भी अब सुखी थी; उसे गहने-कपड़े की याद न आती थी। वैसे तो देहात में अच्छे गहने-कपड़े पहिनता ही कौन है? फिर भी सबके बीच में बिंदो-ही-बिंदो दिख पड़ती थी। बिंदो सबसे अधिक सुंदरी तो थी ही; साथ ही पति की तरह वह सबसे अच्छे कपड़े भी पहिना करती थी।

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